संपादकीय l नवनीत कुमार झा : बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की तैयारियों ने सियासी गलियारों में हलचल बढ़ा दी है। खासकर विभूतिपुर विधानसभा क्षेत्र में जेडीयू के सामने सबसे बड़ी चुनौती उम्मीदवार चयन की है। स्थानीय नेताओं में कोई बड़ा और सर्वमान्य चेहरा न उभर पाने की वजह से अब टिकट की उम्मीदें बाहरी नेताओं तक जा पहुँची हैं।जेडीयू की यह स्थिति कई सवाल खड़े करती है। क्या स्थानीय नेतृत्व का अभाव पार्टी संगठन की कमजोरी को उजागर नहीं करता? क्या यह स्वीकारोक्ति नहीं है कि पार्टी ने बीते वर्षों में यहां अपने कार्यकर्ताओं और नेताओं को मजबूत करने की दिशा में गंभीर प्रयास नहीं किया?राजनीति में स्थानीयता का महत्व हमेशा रहा है। मतदाता उस उम्मीदवार को प्राथमिकता देता है, जिसे वह अपना मान सके, जो उसके सुख-दुख में साथ खड़ा रहा हो।

बाहरी नेता चाहे कितने भी सक्षम और ऊर्जावान क्यों न हों, जनता के बीच उनकी स्वीकृति सहज नहीं बनती। ऐसे में विभूतिपुर जैसी संवेदनशील और प्रतिस्पर्धी सीट पर यदि जेडीयू बाहरी चेहरे पर दांव लगाती है, तो यह कदम दोधारी तलवार साबित हो सकता है।संगठन की मजबूती तभी संभव है जब स्थानीय कार्यकर्ताओं को विश्वास में लेकर नेतृत्व तैयार किया जाए। बाहरी चेहरों पर निर्भरता यह दर्शाती है कि पार्टी का स्थानीय ढांचा कमजोर है। यही वजह है कि विरोधी दल इस स्थिति का लाभ उठाने के लिए पूरी तरह सक्रिय हैं।जेडीयू को चाहिए कि वह टिकट वितरण में स्थानीयता को सर्वोच्च प्राथमिकता दे। यदि जनता की नब्ज समझे बिना केवल समीकरण साधने के लिए बाहरी नेता थोपे गए, तो इसका खामियाजा चुनाव परिणाम में भुगतना पड़ सकता है।विभूतिपुर की जनता जागरूक है और अब वह केवल नारों या वादों से प्रभावित नहीं होती। इस बार का चुनाव स्थानीय बनाम बाहरी की बहस को और गहराई से उभार सकता है। जेडीयू को इस चुनौती को गंभीरता से लेना होगा, वरना विभूतिपुर की राजनीति में उसकी पकड़ ढीली पड़ सकती है।
