समस्तीपुर/नवनीत कुमार झा : जिले में पुलिस व्यवस्था इन दिनों सवालों के घेरे में है। अब यह चर्चा सिर्फ थाना स्तर तक सीमित नहीं रही, बल्कि जिले के शीर्ष पुलिस पदाधिकारी पर भी उंगली उठ रही है।जानकारी के मुताबिक, समस्तीपुर में हाल के वर्षों में पुलिस अधीक्षक विनय तिवारी के बाद अलग-अलग एसपी तैनात रहे। इनमें मौजूदा एसपी अरविंद प्रताप सिंह दूसरे नंबर पर हैं।

लेकिन जिले के जानकार लोग साफ कह रहे हैं कि उनकी कार्यशैली नेतृत्वविहीन और शिथिलता से भरी है।सबसे बड़ी शिकायत यह है कि एसपी साहब का फोन शायद ही कभी उठता हो। मीडिया से लेकर आम जनता तक – सबको यही अनुभव है कि संवाद के नाम पर ‘चुप्पी’ ही उनका स्टाइल है। यही वजह है कि अब तक उनका आधिकारिक बयान भी नहीं मिल पाया है। सवाल यह है कि जब जिले का पुलिस कप्तान ही जनता और मीडिया से संवाद से कतराने लगे तो फिर पुलिसिंग की पारदर्शिता और जवाबदेही कहाँ बची?दूसरी तरफ, थानों में पुलिसकर्मियों का मनमाना रवैया और सुस्ती लगातार बढ़ी है। कहीं केस दर्ज करने में टालमटोल, तो कहीं पीड़ित को ही उल्टे परेशान करना – ये तस्वीर आम हो चुकी है।ऐसा क्यों हो रहा है?

क्या यह सब एसपी के नेतृत्व की कमी का परिणाम नहीं है?जिले के जानकारों का मानना है कि पुलिस का चरित्र शीर्ष से तय होता है। कप्तान अगर सख्त, जवाबदेह और संवेदनशील हों तो पूरी मशीनरी चुस्त रहती है। लेकिन मौजूदा हालात बता रहे हैं कि समस्तीपुर में पुलिस कप्तान की पकड़ कमजोर है और इसका सीधा असर जनता की सुरक्षा व विश्वास पर पड़ रहा है।आज सबसे बड़ा सवाल यही है – क्या समस्तीपुर की पुलिस व्यवस्था नेतृत्वविहीन होकर ‘अपने हाल पर’ छोड़ दी गई है? और अगर हाँ, तो इसका खामियाज़ा आखिर कौन भुगतेगा – जनता या सरकार?
📝 नोट : पुलिस अधीक्षक अरविंद प्रताप सिंह का पक्ष समाचार लिखे जाने तक प्राप्त नहीं हो सका है। अगर वे चाहें तो हम अगली रिपोर्ट में उनका स्टेटमेंट शामिल करेंगे।
