विभूतिपुर में “आवास है, जमीन नहीं – प्रशासन की आधी-अधूरी योजनाओं का नमूना”

समस्तीपुर/संपादकीय/नवनीत कुमार झा : विभूतिपुर प्रखंड क्षेत्र अंतर्गत महिषी पंचायत के वार्ड संख्या 07 आज एक बड़े सवाल के केंद्र में है। यहां का एक महादलित परिवार मनरेगा भवन में रह रहा है। ग्रामीण बार-बार आवेदन देकर थक चुके हैं, समस्तीपुर नाउ न्यूज़ पोर्टल की टीम पदाधिकारी को कॉल करते-करते हार मान चुके हैं, लेकिन नतीजा वही—ढुलमुल रवैया।

विभूतिपुर प्रखंड विकास पदाधिकारी (BDO) का बयान आया कि “परिवार को सड़क पर नहीं फेंक देंगे”। यह संवेदनशीलता सराहनीय जरूर है, लेकिन सवाल यह है कि आखिर समाधान कब और कैसे होगा?

हकीकत यह है कि उस परिवार को आवास योजना का लाभ तो मिला, लेकिन जमीन उपलब्ध नहीं कराई गई। बिना जमीन के घर कागज़ों में ही खड़ा हो जाता है, हकीकत में नहीं। यही हमारे तंत्र की सबसे बड़ी विफलता है। घर देने का वादा पूरा हो गया, लेकिन जमीन देने की जिम्मेदारी अधर में लटक गई।

👉 अब सीधा सवाल उठता है—

  • अगर प्रशासन गरीबों को जमीन ही नहीं देगा, तो आवास योजना का क्या मतलब रह जाएगा?
  • जब परिवार मजबूरी में मनरेगा भवन में रह रहा है, तो आखिर एसडीएम और बीडीओ की भूमिका क्या है?
  • क्या जनता की सैकड़ों अर्जियां और फोन कॉल सिर्फ़ कूड़ेदान में जाने के लिए हैं?

यह केवल एक परिवार की समस्या नहीं, बल्कि गरीबों के साथ आधे-अधूरे न्याय का प्रतीक है। एक तरफ़ सरकार कागज़ों पर “सबका साथ–सबका विकास” का नारा देती है, दूसरी तरफ़ ज़मीन और घर के बिना गरीब परिवार भवनों और फुटपाथों में शरण लेने को मजबूर है।प्रशासन का यह रवैया बताता है कि योजनाएं सिर्फ़ फोटो खिंचवाने और रिपोर्ट भेजने के लिए चलाई जाती हैं। ज़मीन देने में लापरवाही, आवास के नाम पर खानापूरी और ग्रामीणों की गुहार पर कान बंद कर लेना—यह सब विकास की सच्चाई को नंगा कर देता है।

आज जनता पूछ रही है:

  • एसडीएम साहब, आपके क्षेत्र के महादलित परिवार कब तक भवनों में रहेंगे?
  • प्रखंड विकास पदाधिकारी, क्या आपकी जिम्मेदारी सिर्फ़ बयान देने तक सीमित है?

यदि प्रशासन सचमुच संवेदनशील है, तो परिवार को तुरंत जमीन उपलब्ध कराई जाए, ताकि आवास योजना का लाभ वास्तविकता में दिखे। अन्यथा जनता मान लेगी कि योजनाएं केवल कागज़ी खेल और दलाल संस्कृति का हिस्सा हैं।

अब वक्त आ गया है कि बीडीओ और एसडीएम अपनी जिम्मेदारी से भागें नहीं, बल्कि गरीब परिवार को उसका असली हक़ दिलाएँ। क्योंकि लोकतंत्र में गरीब की आह सबसे बड़ा सवाल बन जाती है।

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